भगवान शिव की पूजा-अर्चना का महापर्व एवं आध्यात्मिक शिखर की पावन रात्रि महाशिवरात्रि के मंगल अवसर पर सभी श्रद्धालु भगवान को नमन कर अपने जीवन में ऊर्जा का संचार करते हैं. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति व्रत रखकर भगवान शिव का ध्यान करता है, उसके जीवन में सदा सुख व समृद्धि बनी रहती है.
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वरायनित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
इस मंत्र का अर्थ है - हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं. त्रिलोचन, आप भस्म से अलंकृत, नित्य एवं शुद्ध हैं. अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले दिगम्बर शिव, आपके 'न' अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमन है.
भगवान शिव के पूजन हेतु दूध व बेल पत्र अति आवश्यक माना जाता है. वैसे देखा जाए तो भगवान को भाव से जो भी अर्पित करें वह स्वयं में ही अति पूजनीय होता है. शिवरात्रि के दिन लोग सर्वप्रथम शिवलिंग पर दूध का अभिषेक करते हैं तत्पश्चात मंत्रोचारण के साथ जल व पंचामृत भगवान शिव को अर्पित किया जाता है. इसके बाद फूल, फल व बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ाए जाते हैं.
तीन नेत्रों वाले भगवान शिव की कृपा आप सभी पर बनी रहे, सभी के जीवन में अपार खुशियों का संचार हो, इसी मंगलकामना के साथ सभी देशवासियों को महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं.
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