हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता
श्री राम और अयोध्या का नाता.
राम चरित मानस के पांच मूल खण्डों में श्री राम बाल-काण्ड के कुछ अंश और अयोध्या काण्ड के कुछ अंशों में ही अयोध्या में रहे हैं.
अयोध्या में रहते हुए अयोध्या जनों के साथ यानि उनके सार्वजनिक जीवन के बारे में कुछ उल्लेखनीय लिखा हुआ नहीं है, तेरह वर्षों के बनवास के दौरान भी भ्राता भरत ने एक योगी की भांति अयोध्या का राजपाठ किया उसमे भी कोई सामाजिक कार्य द्वारा ख्याति योग्य बात नहीं कही गयी है. राज क़ाज के आम मसले और दिनचर्या के ही कार्य बताये गए हैं जिसमे एक दिन दुसरे दिन से अलग नहीं है.
अयोध्या में श्री राम के भी जो कुछ वर्ष लिखित हैं, उसमे भी राज षड़यंत्र (अयोध्या काण्ड में ), या स्वार्थी प्रजा द्वारा (उत्तर काण्ड में ) एक मर्यादा पुरुषोत्तम राजा को प्रताड़ित करने, उनके परिवार को उससे तोड़ कर, उनके बच्चों तक को प्रमाण देने के लिए बाध्य कर, अन्त तक उनकी भार्या को प्रताड़ना देने के बाद भी उन्ही के पीछे पीछे सरयू में समाधी ले कर मोक्ष तक पा लेने की बात बोली गयी है.
श्री राम की कर्मभूमि, 14 साल का वनवास.
श्री राम की ख्यति अयोध्या में नहीं बल्कि अयोध्या से बाहर बिताये उन चौदह वर्षों में है,
जब वो अपने परिवार के साथ वचन पालन के लिए वनों में पैदल चलते हैं, -
यानि सोशल कॉन्ट्रैक्ट का पालन बिना किसी कोर्ट कचहरी, पुलिस, महंगे वकीलों के बिना ही करते हैं.
आज कितने ही भारत के नागरिक हैं जो अपनी ज़बान पर काम करते हैं. बैंकों से पैसा उधार ले कर विदेश भाग जाना, विज्ञापन, ट्विटर, फेसबुक पर करोड़ो खर्च कर झूठ फैला कर राजनीती कर लेना और राष्ट्र के भविष्य को ख़तरे में डाल देना. आज घपला, घोटाला, केस, फ़िरौती, उगाही, सत्ता पा लेने की होड़ आज हर तरफ़ है.
जब वह अपने मित्र निषादराज गोह से मिलते हैं, और केवट से सहायता मांगते हैं.
अपने से कमजोरों से भी भद्र व्यहार और समानता का भाव.
आज हमारे आस पास तो जैसे मौका मिलते ही दुर्बल को दबा कुचल कर लाभ ले लेने की जैसे होड़ लगी हुई है. बड़ी गाड़ी वालों का साइकिल वालों पर, बड़ी दुकान वालों का छोटी दुकान वालों को. फाइव स्टार सर्विस की होड़ में जो भी उधम आपके लिए काम करे उससे बस बदतमीजी से पेश आना और थोडा और निचोड़ लेना हमारे चरित्र का भाग हो गया है.
शबरी के जूठे बेर खाना.
जात पात की समस्या आज से नहीं है, प्रभु राम का युग भी इसी से ग्रसित था. राजा, पण्डे और बड़े बड़े मंदिर की तिकड़ी, वंश और वर्ण व्यवस्था को सदियों तक चलाते थे, एक परिवार और उसके वंशज जिसको “देवता का आशीर्वाद है, या देवता के ही वंशज हैं” वही राज करता था, पण्डे उनको सत्यापित करते थे और बड़े बड़े स्तम्भ और इमारतें बना कर लोगों को वश में रखते थे.
इसी व्यवस्था में शबरी जैसी संतति का एक स्थान था, नगर से दूर एक निर्जन कुटिया. इसी कुटिया में आज के करोड़ों वंचितों की तरह वह भी प्रभु स्वरुप राजा का इंतज़ार करती थी. श्री राम ने जब जूठे बेर खाए तो उन्होंने उस वंशवाद, जातिवाद की दीवार गिराई थी.
आज के भारत का हाल - जाति, वर्ण की राजनीती और समाज में जाती, कुल, गोत्र, वंशवाद, अगड़ा, पिछड़ा की वीभत्स अवस्था खुद ही बयां करती है, और बताती है कैसे हमने श्री राम के वनवास, त्याग और बलिदान के कारणों के बारे में कभी सोचा तक नहीं, और समाज आज भी उसी आदियुग की सोच में उलझा हुआ है.
ज्ञान, विज्ञानं और अनुसन्धान.
श्री राम ने अपने 13 वर्ष का वनवास गुरु वशिष्ठ से ले कर, गुरु अगस्त्य, गुरु मतंग और इन जैसे सैकड़ों वज्ञानिकों, दार्शनिकों के साथ इनसे सीखने, और इनकी सुरक्षा में बिताये.
विज्ञानं में इन्होने जाती, नस्ल का भेद नहीं देखा, एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्राप्त किया, और शक्ति को साधा जिससे रावण जैसे बलशाली राजा को तो हराया जा सके, साथ में ही लंका तक का लोक कल्याण हो सके, कोई और राजा आपको शत्रु के रूप में ना देखे, मित्रता चाहे.
श्री राम के जाने के तकरीबन साढ़े सात हज़ार साल बाद भी आज चीन को डराने के लिए हम अमेरिका के युद्धपोत बुला कर दिखाते हैं.
और देश में ट्विटर, फेसबुक और पेड मीडिया का प्रपंच फैला कर ख़ुद को ही ख़ुश करते हैं, और अपनी अकर्मण्यता को ढँक चैन की नींद सोते हैं.
आज हम जिसे जानते नहीं उसे जानना नहीं चाहते, बस उससे नफ़रत करते हैं, और नफ़रत ऐसी जिसे सिर्फ ट्विटर की कैंपेन से दिशा पलट किया जा सकता है. और जो काम हमने कभी किया नहीं उस काम का यश लेना चाहते हैं. सेल्फी जीवन इस बात का प्रमाण ही है.
प्रभु श्री राम का जीवन जो वनवास में बीता वही दर्शन है, उसी तरह कृष्ण की गीता ही उनका दर्शन है, जिसमे उन्होंने ने जाती, वंश, पुरातनपंथ इत्यादि को जंजीरों को तोड़ कर चेतना, ज्ञान और कर्म को प्रमुखता दी है.
मगर हम कृष्ण को माखन चोर, रास लीला, जादू के खेल में बाँध देते हैं, और अपना उल्लू साध लेते हैं. वहीँ राम को भव्य महल, अग्नि बाण, ब्रम्हास्त्र, जादुई रथ और सीता को रसोई से बाँध कर अपना राजा, पण्डे और पैसा ले कर स्वर्ग का रास्ता खोलने का धंधा ज़माने में लग जाते हैं.
“जय हनुमान ज्ञान गुण सागर” आज यूटूब पर हर बच्चा गा रहा है, मगर हनुमान से आपको क्या ज्ञान मिलता है, और क्या गुण आप अपने अन्दर आत्मसात करना चाहोगे, इसकी व्याख्या भारी प्रचार के बीच दब जाती है.
राम का नाम
राम शब्द का अस्तित्व दशरथ, अयोध्या और राम राज्य से पहले का हैं, जब गुरु वशिष्ठ ने दशरथ-कौशल्या पुत्र को यह नाम दिया तब भी यह नाम प्रचलित था, परशुराम के नाम में राम था, और बाद में संगठित धर्मों (इस्लाम, यहूदी और इसाई) के पित्र एबराम (जिन्हें बाद में इब्राहीम कर दिया गया) के नाम में भी राम था.
राम का शब्दार्थ ही - ईश्वर के समान है, और ये एक मूल शब्द है, जैसे ॐ.
तो क्या राम अयोध्या के हैं?
अगर नेपाल ये सिद्ध कर देता हैं की अयोध्या नेपाल में हैं, तो क्या राम नेपाली हो जाएँगे? क्या हम इसी में उलझे रहेंगे की सीता माता नेपाली हैं या बिहारी? और राम का दर्शन नज़रंदाज़ कर देंगे.
क्या कैलाश आज चीन में हैं तो शिव जी चीनी हो जाएँगे, और ॐ पर चीन आधिपत्य कर लेगा?
क्या हम राम का वंश क्या था, सूर्यवंश की स्थापना, और कौन कौन किस पुरातन वंश का है उसी हिसाब से अपना स्थान ले, यही करते रहेंगे, या देखेंगे की राम ने तो वंशवाद पर ही प्रहार किया था, और राजा का धर्म परिभाषित किया था और इसीलिए वह आदरणीय भी हैं, उनके दादा, परदादा या पोते परपोतों को तो कोई नहीं पूजता.
आज विश्व का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर अंगकोरवत कम्बोडिया में है, तो क्या विष्णु भगवान और उनके अवतार बुद्ध पर अधिपत्य उनका है?
जीसस क्राइस्ट जन्म से एक यहूदी थे और आज के इजराइल में इनका जन्म हुआ था, यानि एक मिडल ईस्टर्न अरब परिवेश था, मगर इनका सबसे बड़ा प्रभाव यूरोप में रोमन कैथोलिक चर्च के माध्यम से हुआ, और क्राइस्ट के भक्त आज यूरोप और अमेरिका में हैं.
धर्म का पूरा इतिहास यही बताता है की धर्म-दर्शन जन्म और इमारतों से काफी अलग और विस्तृत है. यही कारण है की जहाँ विश्व भर की विकसित जनसँख्या पुलिस के डर से नहीं बल्कि अपने दर्शन के आधार पर पूरा पूरा देश साफ़, स्वच्छ और वैश्विक विकास की परिभाषा रख पाती है, वहीँ हमारे यहाँ इक्यावन रूपए के लड्डू चढ़ा कर और घंटा पीट कर भगवान की आवाज़ दबा देने की कोशिश की जाती है, और फिर एक चमत्कार की आशा की जाती है, जिसमे स्वयं हनुमान आकर टैक्टिकल नुक्लिअर मिसाइल कवच बनाएँगे, बिहार को बाढ़ मुक्त करेंगे, गुडगाँव में सड़कें बनवाएँगे.
आज हम काशी जाते हैं और 200 रूपए का पेडा, धतुरा, दूध प्रभु के प्रतीक शिवलिंग पर पंडित जी के इशारे पर डाल के, हर मूर्ती पर 50 रूपए रख के चमत्कार की इक्क्षा ले कर घर आ जाते हैं. लगातार बजती घंटी और भीड़ में शिव का योग कहीं सुनाई नहीं देता.
वही योग आज यूरोप और अमेरिका में अपना विस्तार पा रहा है और नए नए रूपों में विकसित भी हो रहा है.
महात्मा बुद्ध का बोधि वृक्ष तो हमारे पास है, मगर बुद्ध के योग से निकला शावोलिन, और कुंगफू का मार्शल आर्ट तो चीनी बच्चे, जैकी चेन और ब्रूस ली ले गए.
तो क्या आज फिर हम दुनिया के सबसे बड़े मंदिर, जिसे देख कर आँखें चकाचौंध हो जाएँ की बात करेंगे और एक खिड़की पर राम सिया की अपनी समझानुसार बनी मूर्ती रख दर्शन करवा कर चंदा उगाहेंगे, फ़ूड कोर्ट और टिकट लगा कर पर्यटन से कमाई की कोशिश करेंगे, या श्री राम के जीवन दर्शन के अनुसार सबको सामानता देने वाले ज्ञान, विज्ञानं, अनुसन्धान और संस्कृति के केंद्र बना कर भारत को प्रगति के रस्ते ले जाएँगे.
वाल्ट डिज्नी ने चर्च नहीं बनाया था, प्रभु का दर्शन ले कर डिस्नी बनाया था, जिस डिस्नी ने एक देश बनाया जिस देश के युद्धपोत अपने टीवी पर दिखा दिखा कर आप अपना खुद का PR करते हो.
राम मंदिर का स्वरुप क्या हो यह हर भारतीय का मामला है, जिसमे किसी निषाद, किसी केवट, किसी हनुमान, किसी अंगद, नल नील, शबरी, विभीषण को नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए.
प्रजा में कर्म ज्ञान और चेतना जनित सत्य और सीधे प्रभु राम के प्रति ईमानदारी की आदत डालनी होगी. और इस पुरातनपंथी, जातिवादी, वंशवादी, कट्टरवाद, और अन्धविश्वास के अंधकार को दूर हटाना होगा जो कहता है की पैसा देने और परिक्रमा करने से स्वर्ग मिलता है.