आज के दिन को हम मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के रूप में जानते है। स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था। उनका असल नाम अबुल कलाम गुलाम मोहिउद्दीन अहमद था, लेकिन वह मौलाना आजाद के नाम से मशहूर हुए। मौलाना आजाद स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। वह दूरदर्शी नेता के साथ-साथ उद्भट विद्वान, प्रखर पत्रकार और लेखक भी थे।
पढ़ाई के दिनों में वह
काफी प्रतिभाशाली और मजबूत इरादे वाले छात्र थे। काहिरा के 'अल अज़हर विश्वविद्यालय' में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। परिवार
के कोलकाता में बसने पर उन्होंने 'लिसान-उल-सिद' नामक
पत्रिका शुरू की। उन पर उर्दू के दो महान आलोचकों 'मौलाना शिबली
नाओमनी' और 'अल्ताफ हुसैन हाली' का गहरा असर रहा। तेरह से अठारह वर्ष की उम्र के बीच उन्होंने बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं का
संपादन किया। मौलाना आजाद ने कई पुस्तकों की रचना और अनुवाद भी किया, जिसमें प्रमुख
इंडिया विन्स फ्रीडम और
गुबार-ए-खातिर हैं। वह नेता नहीं बनना
चाहते ही थे। वह कहते भी थे कि राजनीति के पीछे वह कभी नहीं दौड़े, राजनीति ने
ही उन्हें पकड़ लिया। वह तो लाजवाब शायर थे।
अबुल कलाम आज़ाद उस वक्त राजनीति से
जुड़े, जब ब्रिटिश ने सन् 1905 में धार्मिक आधार पर बंगाल का विभाजन कर
दिया। वह क्रांतिकारी संगठन में शामिल होने के बाद अरविंद घोष, श्यामसुंदर चक्रवर्ती
आदि के संपर्क में पहुंच गए। उन्होंने 1912 में एक साप्ताहिक पत्रिका निकालना शुरू किया। उस पत्रिका
का नाम अल हिलाल रखा। अल हिलाल के माध्यम से उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द और
हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना शुरू किया और साथ ही ब्रिटिश शासन पर प्रहार
किया। पर सरकार ने इस पत्रिका को बंद कर दिया।
अल हिलाल' के बंद होने के
बाद आज़ाद ने 'अल बलघ' नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। वर्ष 1916 में उनके
गिरफ्तार हो जाने के बाद यह पत्रिका भी बंद हो गयी।
आज़ाद भारत में वह
पहले शिक्षामंत्री बने। नि:शुल्क शिक्षा, भारतीय
शिक्षा पद्धति, उच्च शिक्षण संस्थानों का मार्ग प्रशस्त किया, साथ ही 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना का श्रेय इन्हें ही जाता है। पंडित
जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में 1947 से 1958 तक मौलाना अबुल कलाम आजाद शिक्षा मंत्री रहे। 22 फरवरी, 1958 को हार्ट अटैक
से उनका निधन हो गया था। 1992 में( मरने के बाद) उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। साथ ही शिक्षा
के क्षेत्र में उनके कार्यों के सम्मान
में उनके जन्म दिवस, (11 नवम्बर) को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस घोषित किया गया।
I write and speak on the matters of relevance for technology, economics, environment, politics and social sciences with an Indian philosophical pivot.