अंग्रेजी में एक कहावत है गाड़ी को घोड़े के आगे जोतना और कुछ ऐसा ही किया गया जब कँवर सेन, तत्कालीन अध्यक्ष-केन्द्रीय जल एवं विद्युत आयोग और डॉ. के.एल. राव, तत्कालीन निदेशक, केन्द्रीय जल एवं विद्युत आयोग, ह्नाँग हो नदी (पीली नदी) के तटबन्धों का अध्ययन करने के लिए मई 1954 में चीन भेजे गये जिससे कि वे कोसी तटबन्धों पर अपनी सिफ़ारिश कर सकें। मज़ा यह था कि योजना 1953 में स्वीकृत हो चुकी थी और इसकी विधिवत घोषणा भी लोकसभा में हो चुकी थी।
गुलज़ारी लाल नन्दा ने दो-दो बार योजना के पक्ष में बयान भी दिये। इतना हो जाने के बाद यह दोनों विशेषज्ञ चीन भेजे गये और इन्होंने वापस आकर ठीक वही रिपोर्ट पेश की जिसके लिए सरकार ने इन्हें वहाँ भेजा था। इन लोगों ने ह्नाँग हो नदी योजना के प्रबन्धन और जन सहयोग के पहलू पर तो जरूर कसीदे कहे पर इसके तकनीकी और विध्वंसकारी पक्ष को एकदम दबा गये।
कँवर सेन और डॉ. के.एल. राव ने चीन से वापस आने पर अपनी रिपोर्ट में लिखा है. जहाँ पीली नदी में बहती हुई अधिकांश सिल्ट महीन है वहीं कोसी में महीन सिल्ट से लेकर मोटा बालू तक पाया जाता है। यदि पीली नदी अपने सिल्ट भार को आसानी से समुद्र तक ले जा सकती है तब यदि कोसी के पानी से मोटे बालू के कणों को अलग कर लेने की व्यवस्था कर ली जाये तो कोई वज़ह नहीं है कि कोसी को क्यों इस तरह काबू में नहीं लाया जा सकता कि वह अपनी सिल्ट, जिसके कारण नदी की धारा बदलती है, बहा न ले जाये।
रिपोर्ट में सिफ़ारिशें देते हुए लिखा गया है कि पीली नदी के तटबन्ध सदियों से सक्षम माने गये हैं, यद्यपि उनमें रख-रखाव तथा किनारों की निगरानी की समस्या के कारण समय-समय पर दरारें पड़ी हैं, कोसी तटबन्ध का निर्माण, बराज के निर्माण से भी पहले, तुरन्त शुरू करना चाहिये। स्थानीय जनता को अभी निर्माण के लिए तथा बाद में रख-रखाव के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये।
ख़तरनाक जगहों पर पत्थरों का जमाव तथा जहाँ जरूरत हो नदी की तलहटी की खुदाई करके धारा को स्थिर रखा जा सकता है तथा कोसी के मुकाबले पीली नदी कहीं ज्यादा सिल्ट को बहुत आसानी से बहा ले जाती है। अतः कोसी में मौजूद सिल्ट बहुत ज़्यादा परेशानी प्रस्तुत नहीं करेगी। केवल मोटे बालू को अलग करना होगा। महीन और मध्यम आकार के सिल्ट कण, यदि इनका परिमाण वर्तमान के मुकाबले बढ़ भी जाये तब भी, वह कोसी के प्रवाह में बह जायेंगे जैसा कि पीली नदी के सन्दर्भ में हो रहा है।
इन दोनों इंजीनियरों के चीन से लौटने के बाद इनकी रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को सितम्बर 1954 में लोकसभा में पढ़ कर सुनाया गया था और लोकसभा सदस्यों से उम्मीद की गई थी कि वह कोसी तटबन्धों की भूमिका पर बेवज़ह परेशान न हों। ज़ाहिर तौर पर यह विशेषज्ञ ह्नांग हो नदी के तटबन्धों की भूमिका से सन्तुष्ट थे और उन्होंने कोसी नदी पर तटबन्धों की सिफ़ारिश की क्योंकि कोसी किसी भी मायने में ह्नाँग हो जितनी ख़तरनाक नदी नहीं थी। मगर न तो ह्नाँग हो नदी अपना सारा पानी बड़ी सरलता से समुद्र में ढाल पा रही थी और न ही उस पर बने तटबन्ध किसी भी प्रकार से पूरी तरह सुरक्षित और कारगर थे और जिस समय हमारे विशेषज्ञ चीन में घूम रहे थे उसके काफ़ी पहले से वहाँ के लोग और वहाँ की सरकार अपनी नदियों के बारे में एक दम अलग तरीके से सोच रही थी।
1955 मे चीन से प्रकाशित वहाँ के तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री तेंग त्से ह्ने की रिपोर्ट में ह्नाँग हो नदी के बारे में काफ़ी जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट के कुछ अंश प्रसंगवश उद्धृत करने योग्य हैं.परन्तु पीली नदी (ह्नाँग हो) में बाढ़ की असाधारण गम्भीरता केवल गर्मी के समय घाटी में वर्षा के कारण नहीं, परन्तु उससे भी अधिक नदी के निचले छोर पर सिल्ट के बहुत ज़्यादा जमाव के कारण है। पीली नदी अपने प्रवाह के साथ दुनियाँ की किसी भी नदी के मुकाबले ज़्यादा सिल्ट लाती है। यह सिल्ट इतनी होती है कि उससे भूमध्य रेखा के चारों ओर 1 मीटर ऊँचे और 1 मीटर चौडे़ बाँध के 23 फेरे लग सकते हैं।
निचले क्षेत्रें में नदी का ढाल सपाट है और यह सिल्ट समुद्र में न जाकर बड़ी मात्र में नदी तल में जमा होती है। परिणामतः धीरे-धीरे नदी तल ऊँचा होता गया और अब तटबन्धों के बीच नदी में पानी का औसत तल तटबन्धों की बाहर की ज़मीन से ऊँचा हो गया है जिसे हम उन्नत नदी (म्मसअंजमक त्पअमत) भी कह सकते हैं।
सिल्ट से भरी हुई ऐसी नदी की धारा स्थिर रह ही नहीं सकती। साथ ही सिल्ट का नदी के मुहाने पर जमाव हर साल बढ़ता ही जा रहा था जिससे न केवल नदी के इस हिस्से में हर साल धारा बदलती रहती है वरन् पूरे निचले क्षेत्र की स्थिति ही ख़तरनाक बन गई है और यही वज़ह है कि जब भी तटबन्धों के बीच में क़ैद नदी की समाई से ज्यादा बाढ़ आती है तब विपत्ति, जल-प्रलय, दरार पड़ना या धारा का बदलना सभी कुछ निचले क्षेत्रें में होता है।
ऐतिहासिक रिकार्डों के अनुसार 1047 ई. से अब तक नदी के निचले क्षेत्रें में लगभग 1500 अवसरों से अधिक पर दरार पड़ना या जल-प्रलय जैसी घटनाएं हो चुकी हैं, 26 बार नदी का धारा परिवर्तन हुआ है जिसमें 9 बार का परिवर्तन बहुत बड़ा था। 1933 की भयंकर बाढ़ में 50 से भी अधिक जगहों पर तटबन्ध टूटे जिससे 11,000 वर्ग कि-मी- क्षेत्र पानी में डूबा। 36 लाख 40 हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हुये तथा 18,000 लोग मारे गये। 2 हजार 3 सौ लाख युआन से अधिक की सम्पत्ति का नुकसान हुआ।
1938 में जापानियों ने चीन पर हमला किया। इस हमले को नाकाम करने के लिए होनान प्रान्त के चेंगचाउ के पास हुआयुवानकू में चियांग काई-शेक सरकार ने ह्नाँग हो का तटबन्ध कटवा दिया था जिससे नदी की धारा में भीषण परिवर्तन हुआ जिसमें 54 हजार वर्ग कि-मी- क्षेत्र में पानी भर गया। एक करोड़ पच्चीस लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुये और इसके पहले कि जापानी सेना का हमला नाकाम होता, जापानी सेना समेत ख़ुद चीन के 8,90,000 लोग मारे गये।
रिपोर्ट आगे लिखती है कि फ्परन्तु क्या हम यह कह सकते है कि पीली नदी का ख़तरा टल गया है, नहीं। इसके विपरीत हमें हमेशा यह ध्यान में रखना चाहिये कि इसके द्वारा किया गया विनाश अब पहले से ज़्यादा गंभीर हो गया है। सन् 1855 ई- के बाद के सौ वर्षों में यह तटबन्ध लगभग 200 बार टूटे हैं। इसका मुख्य कारण नदी के निचले क्षेत्रें में सिल्ट का जमाव है। एक क्षेत्रीय सर्वेक्षण के अनुसार निचले क्षेत्रें में नदी का तल एक से लेकर दस से.मी. तक प्रति वर्ष बढ़ रहा है। कुछ स्थानों पर नदी तल आस-पास की ज़मीन से 10 मीटर ऊपर हो गया है। इस रिपोर्ट में तटबन्ध बना कर नदी की बाढ़ रोकने के तरीके को बाबा आदम के समय का तरीका बताया गया था। इसके अनुसार पान ची-सुन के प्रसिद्ध गुरु मंत्र-तटबन्ध बना कर पानी को रोके रखो और तेज़ धारा में बालू को बहा दो की एक तरह से चुटकी ली गई थी कि उनके पुरखों का ज्ञान कहाँ जा कर ठहर गया था। चीनियों ने तब सीख लिया था कि पानी और सिल्ट का विस्थापन एक कभी न ख़त्म होने वाला सिलसिला है।
यह तो साफ़, है कि सिल्ट का इतना अधिक जमाव तटबन्धों को ऊँचा करके या उन्हें मजबूत करके रोका नहीं जा सकता। वास्तव में तटबन्ध जितने ऊँचे और मजबूत होते जायेंगे सिल्ट का जमाव उतनी ही तेज़ी से बढ़ेगा क्योंकि सिल्ट के बाहर जाने के सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं। इस प्रकार हम अपने ही जाल में प़फ़ँसते हैं और जल-प्लावन, तटबन्ध टूटना, धारा परिवर्तन आदि के ख़तरे हमारा पीछा नहीं छोड़ते।
1954 के प्रारंभ में चीन ने सोवियत संघ से विशेषज्ञों के एक दल को अपने यहाँ आमंत्रित किया जिससे बड़े बाँधों की मदद से पीली नदी की समस्या के स्थाई समाधान के लिए राय माँगी गई। ए.ए. कोरोलीप़फ़ की अध्यक्षता में सात सदस्यों का एक दल जनवरी, 1954 में पीकिंग पहुँचा तथा अप्रैल, 1954 में पीली नदी योजना आयोग की स्थापना हुई। यह कदम चीनियों ने ह्नाँग हो नदी के तटबन्धों से तंग आ कर उठाया था। यह घटना कँवर सेन तथा डॅा- के- एल- राव की चीन यात्र के पहले की है जो मई 1954 में चीन पहुँचे थे।
इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद चीनियों की अपनी समस्याओं के प्रति उनके उस समय के सोच का अन्दाज़ा लगता है। जब वे अपने लिए ऊँचे बाँधों की सहायता से पीली नदी को सिल्ट मुफ्त बहाने की बात कर रहे थे उसी समय हमारे यह दोनों विशेषज्ञ, डॉ. के. एल. राव और कँवर सेन, 1953 की तटबन्धों वाली कोसी योजना को ठीक-ठाक होने का प्रमाण पत्र लेकर चीन से वापस आये। कँवर सेन के ही अनुसार चीन की हुआई योजना के मुख्य अभियंता वांग-हू-चेंग ने कहा था कि 1953 वाली योजना मुझे बहुत ठीक लगती है बशर्ते कि आप लोग सिल्ट नियंत्रण के लिए भी कुछ करें।
वस्तुतः 1953 वाली योजना में सिल्ट नियंत्रण का कोई प्रावधान था ही नहीं और इसके बिना योजना का कोई दीर्घकालिक मतलब ही नहीं था। इसी प्रकार दो अमेरिकन विशेषज्ञों, टॉरपेन और मैडॉक का भी हवाला दिया जाता है जिन्होंने कहा बताते हैं कि फ्स्वीकृत योजना वस्तुतः बहुत ही सावधानी पूर्वक किये गये अध्ययन के बाद सक्षम इंजीनियरों द्वारा बनाई गई है तथा यह योजना बहुत से सम्भावित प्रस्तावों में सबसे अच्छी है।
भविष्य में कभी सिल्ट जमाव के कारण नदी तल में उठान होगा तब तटबन्ध अव्यावहारिक हो जायेंगे और उस समय कोई पूरक व्यवस्था करनी पड़ेगी। यह दोनों अमरीकी विशेषज्ञ यह बताना भूल गये कि ख़ुद उनके देश में 1833 से 1927 के बीच में मिस्सीस्सिपी नदी के तटबन्धों को 5.18 मीटर ऊँचा करना पड़ा था जिसके बावजूद तटबन्धों में दरार पड़ना तथा उनके ऊपर से हो कर नदी का बहना ज़ारी रहा।
1912 की मिस्सीसिपी नदी की बाढ़ में इसके तटबन्धों पर से कम से कम 300 जगहों पर बाढ़ का पानी ऊपर से बह गया और वहाँ तटबन्ध टूट गया और नदी के कुल 1640 किलोमीटर लम्बे तटबन्धों में से 96 किलोमीटर का सफ़ाया हो गया था।90 वास्तव में मिस्सीसिपी तटबन्धों की हालत 1882 से ही बहुत ख़स्ता थी और नदी में जानलेवा बाढ़ आने लगी थी जो कि 1897 और 1903 में फिर देखी गई।उसी तरह 1927 में, अमेरिका की मिस्सीसिपी नदी ने पिछले साल सारे बन्धनों को तोड़ दिया और 51,200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में उसका पानी फैल गया जिसकी वज़ह से 20 करोड़ डॉलर से लेकर 100 करोड़ डॉलर के बीच की सम्पत्ति का नुकसान हुआ।
टूटे तटबन्धों के कारण लगभग 7.5 लाख लोग बेघर हो गये और उनमें से कोई 6 लाख लोगों को रेडक्रॉस की शरण लेनी पड़ी। अमेरिका जैसे सुखी, समपन्न और ताकतवर देश की कोई हिकमत इन लोगों के काम नहीं आई और उन्होंने चुपचाप तकलीपे़फ़ं बर्दाश्त कीं। इस प्रलय का पूरा ब्यौरा अभी उपलब्ध नहीं है।
कुछ लोग अपने घरों को लौट आये हैं मगर काप़फ़ी लोग बाढ़ के डर से लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पाये हैं। इंजीनियरों को मिस्सीसिपी नदी की धारों की क्षमता बढ़ाने और बाढ़ को कम करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी जिससे बाढ़ का लेवेल कम हो सके। नदी की धारों की बड़े पैमाने पर खुदाई की गई जिसकी कीमत अमेरिका जैसा अमीर देश ही अदा कर सकता है।
इस तरह से चीन और अमेरिका दोनों ही देशों की नदियों और उन पर बने तटबधों के तज़ुर्बे अच्छे नहीं थे मगर इन दोनों ही देशों से तटबन्धों की घटिया तकनीक की वकालत करने वाले इंजीनियरों की कोई कमी नहीं थी। सवाल यह है कि सिल्ट को नियंत्रित करने की पूरक व्यवस्था की परिभाषा क्या है? इसके लिए दो ही रास्ते हैं जो मालूम हैं। एक रास्ता तो यह है कि 1951 की दरों पर 177 करोड़ रुपये की लागत से बराहक्षेत्र बांध बनाया जाय और दूसरा यह कि कोसी के जलग्रहण क्षेत्र में भारी मात्र में वनीकरण किया जाय।
यह दोनों ही काम भारतवासियों के वश में नहीं है क्योंकि बांध बनाने का स्थल और कोसी का अधिकांश जल-ग्रहण क्षेत्र-दोनों ही नेपाल में है और यह दोनों ही काम लागत और समय के लिहाज़ से कभी भी 1953 वाली कोसी योजना के पूरक तो नहीं ही हो सकते थे। इन दोनों तरीकों को अपनाने से होने वाला लाभ भी सन्देह के दायरे में आता है जिस पर हम आगे विचार करेंगे। जहाँ तक वनीकरण का सवाल है, वहाँ तो कोसी की धारा तब भी बदलती थी तब उत्तर के जंगलों पर अंग्रेज़ों की कुल्हाडि़याँ नहीं बरसी थीं।
असल में हमारे दोनों बांध विशेषज्ञों की चीन यात्र एक छलावा थी क्योंकि कोसी पर तटबन्ध बनाने का राजनैतिक निर्णय तो दिसम्बर 1953 में लिया जा चुका था और उसको केवल तकनीकी वैधता देने का काम बाकी था। यह बात इन विशेषज्ञों को पहले से ही मालूम थी और यह काम इन लोगों ने बड़ी मुस्तैदी और वफ़ादारी से कर दिखाया।
सिल्ट की समस्या जो कि कोसी और उत्तर बिहार की लगभग सभी नदियों की समस्या की जड़ में है उसके बारे में सिर्फ यह कह देना कि यदि कोसी के पानी से मोटे बालू के कणों को अलग करने की व्यवस्था कर ली जाय तो कोई वज़ह नहीं है कि कोसी को क्यों इस तरह काबू में नहीं लाया जा सकता मगर कोसी के पानी से मोटा बालू अलग कैसे हो, इसकी क्या लागत होगी और इसमें कितना समय लगेगा और यह कि इस सारे काम का ज़्यादातर हिस्सा नेपाल में करना होगा-इसके बारे में रिपोर्ट में ख़ामोशी अखि़्तयार कर ली गई।
विशेषज्ञों ने चीन में नदी-घाटी परियोजनाओं में चल रहे जन-सहयोग की तो ख़ूब जम कर तारीफ़ की, क्योंकि उनके चीन जाने के काफ़ी पहले 1952 में देश में भारत सेवक समाज की स्थापना हो चुकी थी जो कि इस तरह के श्रम-बाहुल्य कामों में जन-सहयोग का काम शुरू करने वाला था और 1953 आते-आते तक यह भी तय हो चुका था कि जनसहयोग की शुरुआत कोसी परियोजना से ही की जायेगी।
I write and speak on the matters of relevance for technology, economics, environment, politics and social sciences with an Indian philosophical pivot.