rakeshprasad.co
  • Home

हिंडन नदी - नकारने से और नासूर बन जाएगी मौसम परिवर्तन की समस्या

  • By
  • Raman Kant
  • November-27-2018

24वां कन्वेंशन ऑफ द पार्टीज अर्थात कोप-24 के माध्यम से आगामी 2 से 14 दिसम्बर 2018 तक पोलैण्ड के शहर काटोवाइस में जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या पर चिंतन होगा। इस बार का चिंतन इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समस्या में सबसे बड़े सहभागी देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा मौसम परिवर्तन की विश्वव्यापी समस्या को पहले ही नकारा जा चुका है। अमेरिका द्वारा मौसम परिवर्तन के अंतराष्ट्रीय समझौते से अपने आप को पहले ही अलग कर लिया गया है। ट्रम्प का यह फैसला सभी के लिए चौंकाने वाला था। ट्रम्प के इस निर्णय से दुनियाभर के पर्यावरणविद् सकते में हैं क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी के दबाव में जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय मौसम परिवर्तन पर अमेरिका का रूख कुछ सकारात्मक बना था लेकिन ट्रम्प के इस निर्णय ने पूरी दुनिया को एक झटका दे दिया। अमेरिका के इस निर्णय से पेरिस समझौते में आनाकानी करते हुए जुड़े देश भी अगर अब बेलगाम हो जाएं तो कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए। ट्रम्प अपने चुनाव प्रचार के दौरान से ही मौसम परिवर्तन की समस्या को मात्र कुछ देशों व वैज्ञानिकों का हव्वा मानते रहे हैं जबकि दुनिया धरती के बढ़ते तापमान से लगातार जूझ रही है। ऐसे कठिन समय में दुनिया का सबसे प्रभावशाली व्यक्ति एक विश्वव्यापी समस्या को दरकिनार करके उससे अलग हो चुका है। अब यह भी तय है कि भविष्य में इस विषय पर बड़े नीतिगत बदलाव होंगे। जिनकी पहल पोलैण्ड में हाने वाले मौसम परिवर्तन सम्मेलन में होती दिखने की प्रबल सम्भवना है।

24वां कन्वेंशन ऑफ द पार्टीज अर्थात कोप-24 के माध्यम से
आगामी 2 से 14 दिसम्बर 2018 तक पोलैण्ड के शहर

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून ने अपने पहले ही सम्बोधन में दुनिया को आगाह किया था कि जलवायु परिवर्तन भविष्य में युद्ध और संघर्ष की बडी वजह बन सकता है। बाद में जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा मौसम परिवर्तन के संबंध में अपनी रिपोर्ट पेश की गई तो उससे इसकी पुष्टि भी हो गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव स्वर्गीय कोफी अन्नान भी मौसम परिवर्तन पर अपने पूरे कार्यकाल में चिंता जताते रहे। दुनियाभर के पर्यावरण विशेषज्ञ भी पिछले दो दशकों से चीख-चीख कर कह रहे हैं कि अगर पृथ्वी व इस पर मौजूद प्राणियों के जीवन को बचाना है तो मौसम परिवर्तन को रोकना होगा। विश्व मेट्रोलॉजिकल ऑरगेनाइजेशन व यूनाइटेड नेशन्स के पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा वर्ष 1988 में गठित की गई समिति इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के पूर्व अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र कुमार पचौरी व अमेरिका के पूर्व उप राष्ट्रपति अल गोर को नोबल समिति द्वारा वर्ष 2007 में शांति का नोबल पुरस्कार दिए जाने से विषय की गंभीरता स्वतः ही स्पष्ट हो गई थी लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा इस ज्वलंत समस्या को नकारना दुनियाभर के पर्यावरणविदों को चिंता में डाल रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प चूंकि व्यापारी भी हैं तो यह मानकर भी चला जा रहा है कि क्लाइमेट चेंज संधि के चलते ऐसे स्थानों से गैस और तेल नहीं निकाल पा रहे हैं जिनको कि प्रतिबंधित किया हुआ है।

डोनाल्ड ट्रम्प के इस रूख से कुछ गरीब और विकासशील देश जरूर खुश होंगे जोकि अपने देश के विकास में मौसम परिवर्तन की संधि को बाधा मानकर चल रहे हैं। भारत के संदर्भ में यह देखने वाली बात होगी कि हमारी सरकार इस निर्णय को कैसे लेती है? भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी मौसम परिवर्तन की समस्या पर गंभीर नजर आते हैं। नरेन्द्र मोदी ने गत वर्ष अपनी लंदन यात्रा के दौरान कहा था कि विश्व के सामने दो सबसे बड़े संकट हैं एक तो आतंकवाद दूसरा क्लाइमेट चेंज और इन दोनों समस्याओं से लड़ने के लिए गांधी दर्शन पर्याप्त है। ट्रम्प का रूख मोदी के एकदम विपरीत है, भारत की तरह ही यूरोपीय देशों को भी मौसम परिवर्तन पर अमेरिका के साथ कदम ताल मिलाने में दिक्कत जरूर आएगी।

अतीत में मौसम परिवर्तन की समस्या को लेकर जहां गरीब व विकासशील देश हमेशा ही दबाव महसूस करते रहे हैं, वहीं अमीर देश अपने यहां कार्बन के स्तर को कम करने के लिए अपनी सुविधाओं व उत्पादन में कमी लाने के लिए ठोस कदम उठाते नहीं दिखे हैं। इस विषय पर पेरिस से लेकर मोरक्को सम्मेलनों में जितने भी मंथन हुए हैं, सबमें अमृत विकसित व अमीर देशों के हिस्से ही आया है जबकि विष का पान गरीब और विकासशील देशों को करना पड़ा है।

वैसे क्लाइमेट चेंज के विषय में अमेरिका के पूववर्ती राष्ट्रपतियों का रूख भी कोई बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है क्योंकि सन् 1997 में क्योटो में हुए सम्मेलन में दुनिया में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन के संबंध में की गई संधि में प्रत्येक देश को सन् 2012 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वर्ष 1990 के मुकाबले 52 प्रतिशत तक की कमी करना तय किया गया था। इस संधि को सन् 2001 में बॉन में हुए जलवायु सम्मेलन में अंतिम रूप दिया गया था। इस संधि पर दुनिया के अधिकतर देशों द्वारा अपनी सहमति भी दी गई थी। गौरतलब है कि पर्यावरण विशेषज्ञ ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के स्तर को 2 प्रतिशत करने के हक में थे, लेकिन अमेरिका जहां पर दुनिया की कुल आबादी के मात्र 4 प्रतिशत लोग ही बसते हैं, वह इस पर सहमत नहीं हुआ था हालांकि सन् 1997 में क्योटो संधि के दौरान बिल क्लिंटन द्वारा इस पर सहमति जताई गई थी लेकिन जार्ज डब्ल्यू बुश ने राष्ट्रपति बनने के पश्चात् इसको मानने से इनकार कर दिया था और फिर बराक ओबामा भी अपने हितों को सुरक्षित करते हुए कुछ बदलावों के साथ बुश की नीतियों को ही आगे बढ़ाते दिखे थे। उस समय अमेरिका के इस रवैये से क्योटो संधि का भविष्य ही संकट में पड़ गया था। लेकिन प्रारम्भ में क्योटो संधि पर झिझकने वाले रूस के इससे जुड़ जाने के कारण दुनिया के अन्य ऐसे देशों पर दबाव बना जोकि इससे बचते रहे थे। इसका श्रेय रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की दूरदर्शिता को जाता है। उस समय अमेरिका के 138 मेयर ने इस संधि के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया था। जैसे के ट्रम्प के रूख से जाहिर हो रहा है कि वे पुतिन के प्रसंशक हैं ऐसे में मौसम परिवर्तन पर दोनों का दोस्ताना कैसे आगे बढ़ेगा अगर ट्रम्प और पुतिन की रणनीति मौसम परिवर्तन को लेकर ट्रम्प की राह चली तो यह पर्यावरण हितैषी नहीं होगा। अमेरिका के अधिकतर उद्योग तेल व कोयले पर आधारित हैं इसलिए वहां अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। ब्रिटेन के एक व्यक्ति के मुकाबले अमेरिका का प्रत्येक नागरिक दो गुणा अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस का अत्सर्जन करता है। जबकि भारत विश्व में कुल उत्सर्जित होने वाली ग्रीन हाउस गैसों का मात्र तीन प्रतिशत ही उत्सर्जन करता है।

यूनाइटेड नेशन्स की रिपोर्ट के अनुसार अगर ग्रीन हाउस गैसों पर रोक नहीं लगाई गई तो वर्ष 2100 तक ग्लेशियरों के पिघलने के कारण समुद्र का जल स्तर 28 से 43 सेंटीमीटर तक बढ जाएगा। उस समय पृथ्वी के तापमान में भी करीब तीन डिग्री सेल्शियस की बढोत्तरी हो चुकी होगी। ऐसी स्थितियों में सूखे क्षेत्रों में भयंकर सूखा पडेगा तथा पानीदार क्षेत्रों में पानी की भरमार होगी। वर्ष 2004 में नैचर पत्रिका के माध्यम से वैज्ञानिकों का एक दल पहले ही चेतावनी दे चुका है कि जलवायु परिवर्तन से इस सदी के मध्य तक पृथ्वी से जानवरों व पौधों की करीब दस लाख प्रजातियां लुप्त हो जाएंगी तथा विकासशील देशों के करोडों लोग भी इससे प्रभावित होंगे। रिपोर्ट के संबंध में ओस्लो स्थित सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्लाइमेट एंड एन्वायरन्मेंट रिसर्च के विशेषज्ञ पॉल परटर्ड का कहना है कि आर्कटिक की बर्फ का तेजी से पिघलना ऐसे खतरे को जन्म देगा जिससे भविष्य में निपटना मुश्किल होगा। रिपोर्ट का यह तथ्य भारत जैसे कम गुनहगार देशों को चिन्तित करने वाला है कि विकसित देशों के मुकाबले कम ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करने वाले भारत जैसे विकासशील तथा दुनिया के गरीब देश इससे सर्वाधिक प्रभावित होंगे।

24वां कन्वेंशन ऑफ द पार्टीज अर्थात कोप-24 के माध्यम से
आगामी 2 से 14 दिसम्बर 2018 तक पोलैण्ड के शहर

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट हमें आगाह कर रही है कि धरती के सपूतों सावधान धरती गर्म हो रही है। वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों (कार्बन डाइ ऑक्साइड, मीथेन व क्लोरो फ्लोरो कार्बन आदि) की मात्रा में इजाफ़ा हो रहा है। यही कारण है कि धरती का तापमान लगातार बढ़ रह है। ओजोन परत छलनी हो रही है, जिसके कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणे सीधे मानव त्वचा को रौंध रही हैं। ग्लेशियर पिघल रहे हैं तथा समुद्रों का जल स्तर बढ़ रहा है। बेमौसम बरसात और हद से ज्यादा बर्फ पड़ना अच्छे संकेत नहीं हैं। इस रिपोर्ट ने सम्पूर्ण विश्व को दुविधा में डाल दिया है। सब के सब भविष्य को लेकर चिन्तित नजर आ रहे हैं। इस विषय पर औधोगिक देशों का रवैया अभी भी ढुल-मुल ही बना हुआ है।

बान की मून ने अपने कार्यकाल में अमेरिका से भी आग्रह किया था कि वह ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को कम करने के लिए सम्पूर्ण विश्व की अगुवाई करे लेकिन अमेरिका क्योटो संधि तक पर सहमत नहीं हुआ, जबकि दुनिया में कुल उत्सर्जित होने वाली ग्रीन हाउस गैसों का एक चौथाई अकेले अमेरिका उत्सर्जन करता है। अमेरिका अपने व्यापारिक हितों पर तनिक भी आंच नहीं आने देना चाहता है। अमेरिका कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन के अधिकार अफ्रीकी देशों से पैसे देकर खरीदना चाहता है लेकिन अपने यहां कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा में कमी नहीं लाना चाहता। ऐसे में मौसम परिवर्तन की समस्या को लेकर डोनाल्ड ट्रम्प का बेपरवाह रूख अमेरिका को निरंकुश बना सकता है जिसके परिणाम अच्छे नहीं होंगें।

नोबल पुरूस्कार विजेता वांगरी मथाई का यह कथन कि जो भी देश क्योटो संधि से बाहर हैं वे अपनी अति उपभोक्तावाद की शैली को बदलना नहीं चाहते सही है क्योंकि वातावरण में हमारे बदलते रहन-सहन व उपभोक्तावाद के कारण ही अधिक मात्रा में ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित हो रही हैं। जिस कारण से जलवायु में लगातार परिवर्तन हो रहे हैं। अगर दुनिया के तथाकथित विकसित देशों द्वारा अपने रवैये में बदलाव नहीं लाया गया तो पृथ्वी पर तबाही तय है। इस तबाही को कुछ हद तक सभी देश महसूस भी करने लगे हैं तथा भविष्य की तबाही का आइना हॉलीवुड फिल्म “द डे आफ्टर टूमारो” के माध्यम से दुनिया को परोसा भी गया। गर्मी-सर्दी का बिगड़ता स्वरूप रोज-रोज आते समुद्री तूफान किलोमीटर की दूरी तक पीछे खिसक चुके ग्लेशियर मैदानी क्षेत्रों के तपमान का माइनस में जाना आदि ये सब कुछ बुरे दौर का आगाज है।

विश्व का जो भी बडा आयोजन आज हो रहा है उसमें मौसम परिवर्तन को रोकने की बात कही जा रही है। यहां तक कि आइफा भी इसके लिए आगे आया है। सार्क के सम्मेलनों में भी इस पर चर्चा की जाने लगी है। वर्ष 2002 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में मालदीव के राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम ने अपनी चिंता प्रकट करते हुए कहा था कि अगर धरती का तापमान इसी तेजी से बढता रहा तो मालदीव जैसे द्वीप शीघ्र ही समुद्र में समा जाएंगे। उनकी यह चिंता उन देशों व द्वीपों पर भी लागू होती है जोकि समुद्र के किनारों या उसके बीच में स्थित हैं। 

वर्ष 2002 में ही जलवायु परिवर्तन पर दिल्ली में हुए एक सम्मेलन में जो घोषणापत्र जारी हुआ था उसमें मौजूद 186 देशों में से अधिकतर देश इस बात पर सहमत थे कि ग्रीन हाउस गैसों में कमी लाई जानी चाहिए। लेकिन यूरोपीय संघ कनाडा व जापान जैसे देश इससे नाखुश थे। इस सम्मेलन में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई का यह कहना कि जो देश अधिक प्रदूषण फैलाते हैं, उन्हें प्रदूषण रोकने के लिए अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए भी इन देशों को चुभ गया था। तथाकथित विकसित व औधोगिक देश अपने विकास में किसी भी प्रकार का रोडा नहीं चाहते हैं। वे अपनी मर्जी के मालिक बने हुए हैं।  

कोटावाइस के सम्मेलन में देखना होगा कि अमेरिका का रूख क्या रहा है। अगर अमेरिका अपने रूख में कुछ बदलाव करता है तो सम्मेलन के परिणाम अच्छे निकल सकते हैं लेकिन अगर अमेरिका अपनी हठधर्मिता पर अड़ा रहा तो यह सम्मेलन भी विवाद की भेट चढ़ सकता है। ऐसे कठिन समय में दुनिया के अगवा देश के प्रमुख डोलाल्ड ट्रम्प ने अगर इस विषय पर अपनी नीति में बदलाव नहीं किया तो दुनिया में अव्यवस्था होनी तय है और फिर दुनिया में बहस एक नए सिरे से प्रारम्भ होगी। उस बहस के नतीजे क्या होंगे अभी उसका आंकलन करना कठिन है लेकिन इतना तय है कि पर्यावरण के लिए परिणाम अच्छे नहीं होंगे और दुनिया एक नए सिरे से दो धड़ों में बंटी दिखेगी। बीमारी को अगर नजर अंदाज किया जाएगा तो तय है कि वह बढ़कर नासूर बनेगी ही।

 

(रमन कांत त्यागी)

निदेशक

नैचुरल एन्वायरन्मेंटल एजुकेशन एण्ड रिसर्च (नीर) फाउंडेशन

प्रथम तल, सम्राट शॉपिंग मॉल, गढ़ रोड़ मेरठ

01214030595, 09411676951

हमसे ईमेल या मैसेज द्वारा सीधे संपर्क करें.

क्या यह आपके लिए प्रासंगिक है? मेसेज छोड़ें.

Recents

I write and speak on the matters of relevance for technology, economics, environment, politics and social sciences with an Indian philosophical pivot.

Image

National Water Conference and "Rajat Ki Boonden" National Water Awards

“RAJAT KI BOONDEN” NATIONAL WATER AWARD. Opening Statement by Mr. Raman Kant and Rakesh Prasad, followed by Facilitation of.  Mr. Heera La...
Image

प्रभु राम किसके?

हरि अनन्त हरि कथा अनन्ताकहहि सुनहि बहुविधि सब संताश्री राम और अयोध्या का नाता.राम चरित मानस के पांच मूल खण्डों में श्री राम बाल-काण्ड के कुछ...
Image

5 Reasons Why I will light Lamps on 5th April during Corona Virus Lockdown in India.

Someone smart said – Hey, what you are going to lose? My 5 reasons.1. Burning Medicinal Herbs, be it Yagna, incense sticks, Dhoop is a ...
Image

हम भी देखेंगे, फैज़ अहमद फैज़ की नज़्म पर क्या है विवाद

अगर साफ़ नज़र से देखे तो कोई विवाद नहीं है, गांधी जी के दिए तलिस्मान में दिया है – इश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान.मगर यहाँ इलज़ाम ल...
Image

Why Ram is so important

Before the Structure, 6th December, Rath Yatra, Court case, British Raj, Babur, Damascus, Istanbul, Califates, Constantinople, Conquests, Ji...
Image

मोदी जी २.० और भारतीय राजनेता के लिए कुछ समझने योग्य बातें.

नरेन्द्र मोदी जी की विजय आशातीत थी और इसका कारण समझना काफी आसान है. राजनितिक मुद्दों में जब मीडिया वाले लोगों को उलझा रहे थे, जब कोलाहल का ...
Image

Amazon Alexa Private audio recordings sent to Random Person and the conspiracy theory behind hacking and Human Errors- Technology Update

An Amazon Customer who was not even an Alexa user received thousands of audio files zipped and sent to him, which are of another Alexa user ...
Image

Indian Colonization and a $45 Trillion Fake-Narration.

We”'ve done this all over the world and some don”t seem worthy of such gifts. We brought roads and infrastructure to India and they are stil...
Image

The Rivers of India - Ganga & Sindhu-East Farming culture, Heritage and The Question of India's survival.

America fixed it!If you visit American city,You will find it very pretty.Just two things of which you must beware:Don't drink the water and ...

More...

©rakeshprasad.co

Connect Social Media