दादा धर्माधिकारी गाँधी सेवा संघ के सक्रिय कार्यकर्ताओं में से
एक थे। इन्होंने अपना अधिकांश समय दलितों और महिलाओं के उत्थान में लगाया। हिन्दी,
संस्कृत, मराठी, बंगला,
गुजराती और अंग्रेज़ी भाषाओं का इन्हें अच्छा ज्ञान था। एक लेखक के
रूप में इनकी दो दर्जन से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई थीं।
I write and speak on the matters of relevance for technology, economics, environment, politics and social sciences with an Indian philosophical pivot.