हिन्दू कैलंडर के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को काशी जन्में संत रविदास ने जन जन को भेदभाव रहित जीवन जीने का संदेश दिया था। "मन चंगा तो कठौती में गंगा" जैसी सुप्रसिद्ध कहावत के रचनाकार संत रविदास ने आजीवन लोगों के भले के लिए कार्य किया, पेशे से वह साधारण से मोची थे और यही उनका पैतृक व्यवसाय भी था लेकिन मन से और अपने विचारों से वह संतों की अव्वल श्रेणी में आज भी सम्मिलित हैं।
चर्मकार कुल में जन्म लेने वाले रविदास जी का मन कभी भी सांसारिक भोग-विलास में नहीं लगता था, इसके स्थान पर वह भक्ति, परोपकार को अपना धर्म मानते हुए प्रत्येक कर्म किया करते थे। आज भी उनके कहे दोहे और उक्तियाँ जन जन में प्रचलित हैं और लोग उन्हें अपना गुरु मानकर उनके पद चिन्हों पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
1. करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
2. हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
3. ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन।
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।
4. कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
5. रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।
6. हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
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