हमारी नदियां मां हैं फिर भी प्रदूषित है, उनकी नदियां मां नहीं लेकिन फिर भी साफ हैं, ऐसा क्यों...... इस कटु सत्य से मेरा परिचय 6-10 जून, 2018 को अमेरिका के बफेलो शहर में आयोजित हुई वाटरकीपर एलाइंस कान्फ्रेंस (एक अंतर्राष्ट्रीय नदी सम्मेलन) के दौरान हुआ। इस सम्मेलन में 28 देशों के करीब 500 नदी कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। सभी ने अपनी नदियों की स्थिति तथा उनके सुधार के लिए किए गए प्रयासों के संबंध में विस्तार से जानकारियां साझा कीं।
अमेरिका में सुचारू नदी तंत्र के लिए लाए गये बड़े बदलाव
अमेरिका में नदियों को मां नहीं मानते हैं लेकिन फिर भी वे अपनी नदियों को साफ-स्वच्छ बनाए हुए हैं जबकि हम अपनी नदियों का मां का दर्जा देते हैं फिर भी उनको प्रदूषण की मार से मरणासन्न स्थिति में पहुंचा दिया है। अमेरिका में नदियों के हालातों को सुधारने के लिए बहुत से प्रयास किये गये, जिनमें सरकार के साथ साथ जनता का सहयोग भी रहा.
कड़े नियम कायदे -
उन्होंने नदियों को सुधारने के लिए जो भी कार्य अपने हाथ में लिया, उसे ईमानदारीपूर्वक पूर्ण किया इसका नजीता हुआ कि उन्होंने अपनी जीवनदायनी नदियों को निर्मल व अविरल बनाए रखा। उनकी नदियां भी कभी भयंकर प्रदूषण का दंश झेल रही थीं, वहां कि सरकारों ने कठोर निर्णय लिए और उनको सभी स्तरों पर पूर्ण ईमानदारी से लागू किया। सीवेज और उद्योगों से निकलने वाले गैर-शोधित तरल कचरे को लेकर कठोर नियम-कायदे बनाए, ये नियम जितने कठोर थे, उनको उतनी की कठोरता से लागू भी किया गया।
उद्योगों पर बेहतर तकनीकी नियंत्रण -
प्रारम्भ में कठिनाइयां आईं लेकिन सरकार की अडिगता के साथ समाज भी खड़ा हो गया। उद्योगों को बेहतर तकनीकें उपलब्ध कराई गयी। कानून का उल्लंघन करने पर उचित दंड की भी व्यवस्था की गई। उद्योगों में सेंसर लगाए गए तथा उसके मानक तय किए गए। अगर मानक के अनुरूप उद्योग ने कार्य नहीं किया तो सेंसर के चलते उद्योग का गेट बंद हो गया और उसका गंदा पानी उसी में भरने लगा। उसके पश्चात् उस उद्योग को पूर्णतः बंद कर दिया गया। इसी प्रकार के कुछ अन्य निर्णय भी लिए गए।
सीवेज सिस्टम में विश्वस्तरीय सुधार -
अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले कुछ विशेष प्रकार के उद्योगों का उत्पादन ही बंद कर दिया गया। इसी प्रकार के निर्णय शहरों से निकलने वाले सीवेज के लिए गए। आधुनिक तकनीक को कड़ाई से लागू किया गया। सीवेज सिस्टम में विश्वस्तरीय सुधार किये गए। सीवेज को नदियों में मिलने से रोका गया।
जनता का भी मिला सहयोग -
अमेरिकन सरकार द्वारा नदियों के रखरखाव के लिए भी व्यवस्थित नियम बनाए। नदियों में कूड़ा-कचरा डालना तो दूर उनमें हाथ डालना, नदी में उतरना, स्नान करना तथा बोटिंग करना जैसे कार्यों को प्रतिबंधित किया और इस प्रतिबंध को वहां के समाज ने माना भी।
पोटोमेक नदी को किया प्रदूषण मुक्त -
मेरीलैण्ड व वर्जीनिया की सीमा को विभाजित करते हुए बहती हुई पोटोमेक नदी वाशिंगटन जैसे बड़े शहर व अमेरिका की राजधानी में पहुंचकर भी साफ-सुथरी ही बहती है। ये कोई चमत्कार से कम नहीं, क्योंकि पोटोमेक नदी सत्तर के दशक में दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में शामिल थी। पोटोमेक के पास खड़ा होना भी दूभर था। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ने पोटोमेक को निर्मल बना दिया।
अन्तर्राष्ट्रीय नदी सम्मेलन में भाग लेने का मृख्य उद्देश्य क्या था?
इस सम्मेलन में करीब 28 देशों के करीब 500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। ये सभी वे लोग थे, जोकि अपने-अपने देशों में नदी सुधार के कार्यों में लगे हैं। देश से बाहर जब भी मैं जाता हूं तो मेरा प्रयास होता है कि वहां के पानी व पर्यावरण को समझा जाए। वहां की नदियां, जंगल तथा पानी का प्रबंधन देखकर अंदाजा लग जाता है कि वहां की सरकार व समाज अपने प्राकृतिक संसाधनों से कितना लगाव रखते हैं।
अमेरिका में नदियों के हालात कैसे हैं?
वहां प्रवास के दौरान बाफैलो, नियाग्रा, ऐरी कैनाल, हडसन, जैनेसी, पोटोमेक, एनाकोस्टिया व राॅक क्रीक सहित आठ नदियां तथा उनका प्रबंधन देखा। इनमें से किसी भी नदी का पानी आप पी सकते हैं। ये अलग-अलग प्रकार की नदियां हैं। इनमें जैनेसी तथा एनाकोस्टिया वाइल्ड नदियां हैं, जोकि घने जंगल के बीच से आती हैं। नियाग्रा, बाफैलो व ऐरी कैनाल पोर्ट की नदियां हैं, जबकि हडसन न्यूयार्क व पोटोमेक वाशिंगटन जैसे बड़े शहरों के बीच से बहती हैं। कोई भी नदी चाहे शहर के बाहर हो या जंगल में किसी भी नदी में किसी भी प्रकार की गंदगी डालना पूरी तरह से निषेघ है। जैनेसी जैसी वाइल्ड नदियों में तो आप हाथ भी नहीं धो सकते हैं।
भारत की नदियों की तुलना अमेरिका की नदियों से किस प्रकार की जा सकती है?
उनकी नदियों की तुलना भारत की नदियों से करना बेमानी होगा। हम नदियों के मामले में ढोंग करते हैं, जबकि वे ईमानदारी से अपना कार्य करते हैं। भारतवासी नदियों को मां का दर्जा देते हैं लेकिन फिर भी नदी को नाला बनाकर रखा है जबकि अमेरिकी या यूरोप के देश के निवासियों ने अपनी नदियों को मां का दर्जा तो नहीं दिया है, परन्तु फिर भी उनकी नदियों में साफ-स्वच्छ पानी बह रहा है।
क्या काली, हिण्डन व यमुना नदी की तुलना वहां की किसी नदी से की जा सकती है?
वाशिंगटन के बीच से होकर बहने वाली पोटोमेक नदी सत्तर के दशक तक हिण्डन व काली जितनी ही प्रदूषित थी, लेकिन वहां की सरकार ने अपनी नदी को सुधारने का निर्णय लिया और एक दशक में ही पोटोमेक को प्रदूषणमुक्त कर दिया। जबकि हम अत्याधिक प्रयासों के बावजूद भी हिण्डन व काली नदियों को प्रदूषणमुक्त करने की राह पर एक कदम ही बढ़ पाए हैं।
गोमती नदी में बनने वाले रिवर फ्रंट का विरोध क्यों? जबकि वहां की नदियों में भी रिवर फ्रंट बने हैं.
हमारे नेता व अधिकारी नदियों के अध्ययन के नाम पर विदेशों की यात्रा जरूर करते हैं, लेकिन उनके कार्य को ठीक से समझते नहीं हैं। वहां जितनी भी नदियों पर रिवर फ्रंट बने हैं वे सभी पोर्ट की नदियां हैं, पोर्ट नदियां होते हुए भी उन्होंने रिवर फ्रंट लकड़ी व पत्थर से बनाए हैं, जबकि गोमती पोर्ट नदी नहीं है, फिर भी हमने गोमती के बेसिन में कंक्रीट की दीवारें खड़ी कर दी है. उसके बेसिन को ही समाप्त कर दिया है। साथ ही देश की अन्य नदियों के साथ भी इसी अत्याचार की परियोजनाएं तैयार की जा रही हैं.
उन्होंने आखिर ऐसा क्या किया कि उनका नदी- तंत्र इतना बेहतर है?
उन्होंने अपनी नदियों को सुधारने के लिए बेहतर योजनाएं बनाई, जिन्हें ईमानदारी से लागू भी किया गया। सीवरेज सिस्टम व उद्योगों के लिए सख्त कानून बनाए। वहां ढोंग नहीं चलता है, बल्कि वहां की सरकारें जो निर्णय लेती हैं उसके प्रति ईमानदार रहती हैं। वहां का समाज भी सरकार के साथ सहयोग करता है।
क्या काली, हिंडन व यमुना भी कभी साफ़-स्वच्छ हो सकती हैं?
यह बिलकुल संभव हो सकता है, परन्तु यदि कार्य पूर्ण ईमानदारी से हो। सरकार सख्त निर्णय ले और अपने निर्णयों को बगैर किसी दबाव के ईमानदारी से लागू करे। समाज यदि नदी को मां मानता है तो नदी के प्रति अपनी मां जैसा ही व्यवहार भी करे।
गंगा नदी के संबंध में क्या किया जा सकता है?
यह बड़े दुख का विषय है कि भारत की करीब 40 करोड़ आबादी की पोषक हमारी राष्ट्रीय नदी गंगा को भी निर्मल व अविरल बनाने में पिछले करीब 30 वर्षाें में भी हम सफल नहीं हो सके हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारे देश में राजनैतिक इच्छशक्ति की कमी है। बाबूगिरी में फैसले अटके रहते हैं और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। गंगा के विषय में कार्य कम और दिखावा अधिक हो रहा है। आज भी जमीनी स्तर पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है।
अभी तो हम गंगा के प्रदूषण को दूर नहीं कर पा रहे हैं, वहीं गंगा नदी में पानी की कमी एक दूसरा संकट बनता जा रहा है। साथ ही गंगा की अधिकतर सहायक नदियों या तो लुप्त हो चुकी हैं, सूख चुकी हैं या फिर नदी से नाला बन चुकी हैं।
अंत में दो शब्द
अगर हम अपनी नदियों को वास्तव में सदानीरा बनाना चाहते हैं तो हमारी सरकारों को कठिन निर्णय लेने होंगे, अधिकारियों को उनको ईमानदारी से लागू करना होगा तथा समाज को भी इसमें पूर्ण समर्पण से सरकारों का सहयोग करना होगा।
I write and speak on the matters of relevance for technology, economics, environment, politics and social sciences with an Indian philosophical pivot.